Naaraazgi

अक्सर किताबों में मिला करती है
उनकी रूह की महक कोई नज़्म सी मालूम होती है
हज़ारों दफ़ा पढ़ी है
समझी है, समझायी है
कुछ लफ़्ज़ अधूरे रह जाते हैं
कुछ बातें फिर छिड़ जाती हैं
वो फिर एक बार उनका ख़फ़ा होना
और बहाने से मुझसे जुदा होना
नाराज़गी के क़िस्से भी यूँ साँस ले रहे हैं
मानो वस्ल की सुबह अब नसीब ही ना हो

7 thoughts on “Naaraazgi

  1. आप पिरोती रहें, शब्दों को ऐसे,
    मानो कोई मोतियों की माला हो।
    इतना नशा आपके लफ्ज़ देते,
    मानो किसी जाम का प्याला हो।

    Absolutely fantastic writing. I mean wow. 😊

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