Mehfooz

जिस रोज़ से तुम्हें इन निगाहों ने देखा है
किताब के पन्नो में तबसे समेटा है

कश्मकश में रहती है फिर भी सियाही
जो उनको क़ैद करने से है थोड़ी हिचकिचाती

एक दिल ही में उनकी जगह है महफ़ूज़
जहाँ दिन रात है आज़ादी की महक आती


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9 thoughts on “Mehfooz

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